1. प्रभु की पूजा-प्रीति के रूप में अपने-अपने जीविकोपार्जन तथा लोक-संग्रह
(प्रभु-कृत सृष्टि-चक्र में सहयोग) आदि कर्तव्य-कर्मों में लगे हुए आधिभौतिक
(डंजमतपंस) ज्ञान-सम्पन्न अधिकारी बन्धुओं को यह अवगत कराना कि गीता जैसा एक
अमृत-ग्रंथ आपके सर्वतोभावेन (सब प्रकार के) कल्याण के लिए विश्व की प्रत्येक
राष्ट्रभाषा में उपलब्ध है।
2. विश्व-मान्य संतों तथा ज्ञानी-महापुरुषों द्वारा वर्णित एवं प्रचारित वेदार्थ
सार-संग्रह रूप गीता-माहात्म्य को सर्वजन सुलभ कराना।
3. मानव-मात्र के लौकिक एवं पारलौकिक कल्याण हेतु श्रेष्ठ एवं अद्भुत जीवन-ग्रंथ
‘श्रीमद्भगवत् गीता’ के श्रवण, स्वाध्याय, मनन तथा अभ्यास के प्रति अधिकारी
बन्धुओंमें अभिरुचि उत्पन्न करना, उत्कण्ठा जागृत करना।